अभद्र, मर्यादाहीन और आपत्तिजनक भाषा गंभीर चिंता का विषय : कुसुम कण्डवाल….

देहरादून। सोशल मीडिया पर बढ़ रही अभद्रता, आपत्तिजनक और अमर्यादित भाषा को लेकर महिला आयोग की अध्यक्ष ने चिन्ता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि आज भारत की बेटियाँ राजनीति, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका सहित समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रही हैं। यह केवल महिला सशक्तिकरण का प्रमाण नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का भी परिचायक है। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से नीति–निर्माण अधिक संवेदनशील, समावेशी और समाजोन्मुख बन रहा है।

महिला आयोग का स्पष्ट मत है कि सभ्रांत, शिक्षित और संस्कारवान परिवारों के युवक–युवतियों को राजनीति एवं सार्वजनिक जीवन में आगे आना चाहिए। राजनीति केवल सत्ता का माध्यम नहीं, बल्कि समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण का दायित्व है। जब योग्य और नैतिक युवा राजनीति में प्रवेश करते हैं, तभी लोकतांत्रिक संस्थाएँ सुदृढ़ होती हैं।

उन्होंने कहा कि आयोग के लिए यह गहरी चिंता का विषय है कि वर्तमान समय में सोशल मीडिया जैसे मंचों पर महिला हो या पुरुष—कुछ तत्व अभद्र, आपत्तिजनक और मर्यादाहीन भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। विशेष रूप से महिलाओं के संदर्भ में की जाने वाली अशोभनीय टिप्पणियाँ न केवल उनकी गरिमा व अस्मिता को ठेस पहुँचाती हैं, बल्कि राजनीति और सार्वजनिक जीवन में उनकी सहभागिता को भी हतोत्साहित करती हैं।

महिला आयोग यह मानता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का मूल आधार है, किंतु यह स्वतंत्रता किसी की प्रतिष्ठा, गरिमा और अधिकारों के उल्लंघन का माध्यम नहीं बन सकती। तथ्यहीन आरोप, व्यक्तिगत चरित्र हनन और उत्तेजक भाषा समाज में असहिष्णुता और अविश्वास को जन्म देती है, जिसका सीधा प्रभाव हमारी आने वाली पीढ़ियों पर पड़ता है।

विशेष रूप से यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी बेटी जो अब हमारे बीच नहीं है मृतक अंकिता भंडारी जैसी बेटी के नाम का उपयोग कर, सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर राजनीतिक बयानबाजी की जा रही है। उसके नाम का उपयोग कर के जबरन तुच्छ राजनीतिकरण किया जा रहा है। महिला आयोग यह स्पष्ट करना चाहता है कि न्यायालय इस प्रकरण में अपनी संवैधानिक भूमिका का निर्वहन कर रहा है। यदि किसी के पास कोई भी तथ्य या साक्ष्य हैं, तो उन्हें विधिसम्मत रूप से न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। पीड़िता के नाम पर की जा रही बयानबाजी उसकी स्मृति और गरिमा के भी विरुद्ध है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और नेताओं का आपसी संवाद, मुलाकातें एवं औपचारिक शिष्टाचार सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा हैं। किसी विशेष परिस्थिति में इन प्रक्रियाओं को तोड़–मरोड़कर प्रस्तुत करना सभ्य व शालीन महिलाओं की गरिमा या न्यायालय की न्याय प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न लगाना पूर्णतः अनुचित है।

उन्होंने मामले में संज्ञान लेते हुए डीजीपी उत्तराखण्ड दीपम सेठ से फोन पर वार्ता के क्रम में यह कहा कि महिला आयोग की यह दृढ़ अपेक्षा है कि:
● सोशल मीडिया पर महिलाओं के विरुद्ध अपमानजनक, अश्लील या भ्रामक सामग्री पर तत्काल संज्ञान लिया जाए।
● ऐसी सामग्री के प्रसार में संलिप्त व्यक्तियों के विरुद्ध कठोर एवं प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

● राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन अपने कार्यकर्ताओं को मर्यादित भाषा और जिम्मेदार आचरण के लिए प्रेरित करें।

● राजनीति के लिए महिला अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए सोशल मीडिया या सार्वजनिक मंचो पर अमर्यादित व अशोभनीय टिप्पणी करना भी अन्य जरूरतमंद पीड़िताओं को भी संशय के घेरे में लाता है।

उन्होंने कहा कि आयोग का मानना है कि संस्कारयुक्त, शालीन और तथ्यपरक राजनीति ही सशक्त भारत की आधारशिला है। जब महिलाएँ और युवा सम्मान, सुरक्षा और विश्वास के वातावरण में सार्वजनिक जीवन में आगे बढ़ेंगे, तभी हमारा लोकतंत्र वास्तव में समावेशी और मजबूत बन सकेगा।

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