महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल की 92वीं जयंती पर उन्हें किया याद…..
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14 November 2025
Shikhar Sandesh

नई दिल्ली । उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली द्वारा मंगलवार 11 नवंबर2025 को महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी की 92 वीं जयंती पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें उनके साहित्य पर चर्चा और काव्यांजलि के माध्यम से उन्हें याद किया गया। साथ ही समारोह में ध्वनिमत से दो प्रस्ताव भी पास किये गए ।
आयोजित कार्यक्रम में कई साहित्यकार, पत्रकार व समाज के गण्यमान्य लोगों ने प्रतिभाग कर महाकवि डंडरियाल जी के साहित्य पर चर्चा और काव्यपाठ कर उनको याद किया।
इस अवसर पर उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी ने कहा कि डंड़रियाल जी ने आजीवन गढ़ साहित्य सृजन के वास्ते अपना जीवन खपा दिया। उन्होंने अपनी रोजी-रोटी की उतनी फिक्र नहीं करी जितनी फिक्र उन्होंने गढ़वाळी साहित्य सृजन की खातिर कि, उसी का परिणाम है कि नागराजा जनु महाकाव्य हमको मिला। डंड़रियाल जी ने कई यात्रावृतांत, उपन्यास और कविता संग्रह की रचना की। आज उनके साहित्य पर शोध हो रहा है। आशा है कि हम सब इस उम्मीद के साथ आगे भी मिलकर काम करेंगे कि एक न एक दिन हमारी गढ़वाळी, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगा मिलेगी। इसके लिए हम अपनी ओर से हर प्रयास करेंगे। उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली उनके नाम से हर वर्ष महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान भी प्रदान करता आ रहा है।
श्री ध्यानी जी ने बताया कि युवा साहित्यकार /शोधार्थी आशीष सुंदरियाल के अथक प्रयास से डंडरियाल जी के रूद्री उपन्यास अर बागी उपन्ना लड़ै खण्ड काव्य व नाटक संग्रह प्रकाशित हुए हैं । इसके अलावा डंडरियाल जी का एक शब्द-कोश भी अप्रकाशित है, जिसे प्रकाशित करने की दिशा में श्री आषीश सुन्दरियाल जी प्रयासरत हैं।
सुप्रसिद्ध समाजसेवी, डीपीएमआई के चेयरमैन और उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच के संरक्षक डॉ विनोद बछेती ने कहा कि महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी हमारे साहित्य शिरोमणि हैं । उनका साहित्य हमारे लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणाश्रोत रहेगा। जो साहित्य डंडरियाल जी रच गए और जितनी विपरीत परस्थितियों में उन्होंने साहित्य सेवा करी वो सब हम सबके लिए सीखने वाली बात है। डॉ बछेती ने बोला कि नई पीढ़ी को लेखन के क्षेत्र में आगे आना चाहिए।
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच के कोषाध्यक्ष और बरिष्ठ रंगकर्मी, साहित्यकार श्री दर्शन सिंह रावत ने डंडरियाल जी का परिचय सबके सामने रखा ।
बरिष्ठ साहित्यकार/उपन्यासकार श्री रमेश चन्द्र घिल्डियाल सरस जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मैंने डंड़रियाल जी जैसे व्यक्तित्व के साथ मंच साझा किया। पहले मैं हिन्दी में ही लिखता था। पर डंडरियाल जी ने मुझसे कहा कि तुम गढ़वाली भाषा में भी लिखो, उसके बाद मैंने गढ़वाली में लिखना शुरू किया और आज तक लगातार लिखता आ रहा हूं।
डॉ. हेमा उनियाल जी ने कहा कि महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी आजीवन साहित्य सेवा में लगे रहे और उन्होंने जीवन के किसी भी हालात में रहकर साहित्य सेवा में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। डंडरियाल जी का साहित्य संसार अद्वितीय है। डंडरियाल जी निर्लिप्त व हमेशा किसी गहरे चिंतन में रहते थे।
सुप्रसिद्ध पत्रकार, लेखक श्रीमती सुषमा जुगरान ध्यानी जी ने कहा कि महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी जैसे बुद्धिजीवी, गढ़वाली साहित्य संसार में मिलना बहुत मुश्किल है। डंडरियाल जी जो साहित्य रच गए हैं, वो सबसे उत्कृष्ट व द्वितीय है। डंडरियाल जी के साहित्य पर शोध होना चाहिए ।
बरिष्ठ समाजसेवी व दिल्ली में न्यायाधीश श्री भाष्करानंद कुकरेती ने डंरियाल जी के साहित्य को किसी भी हिन्दी के स्वनामधन्य साहित्यकार से भी अधिक उत्कृष्ट बताया। उन्होंने कहा कि हम लोगों को उनका साहित्य समाज के सामने लाना चाहिए। उसके लिए जो भी मदद होगी हम सब को मिलकर करनी चाहिए।
बरिष्ठ पत्रकार, चिंतक श्री चारू तिवारी जी ने दो कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि महाकवि डंडरियाल जी के साहित्य का और भाषाओं में भी अनुवाद होना चाहिए। जिससे की दुनिया को पता चल सके कि डंडरियाल जी ने कितने उच्च कोटि का साहित्य रचा है। इसके लिए हमें प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि डंडरियाल जी के “अंज्वाळ कविता संग्रै” को स्वर्गीय नत्थी प्रसाद सुयाल जी ने प्रकाशित किया था। सुयाल जी भाषा , साहित्य का प्रति सजग रहने वाले व्यक्ति तो थे ही, समाज को भी प्रेरित-उद्वैलित करते थे कि अपने भाषाई सरोकारों को बचा के रखें और उनको आगे बढ़ाओ।
बरिष्ठ रंगकर्मी/फ़िल्मकार श्री खुशहाल सिंह बिष्ट ने कहा कि डंडरियाल जी के साहित्य संसार को समाज के सामने लाने वाले उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली का और श्री आशीष सुंदरियाल का प्रयास जरूर सफल होगा और डंडरियाल जी का अप्रकाशित साहित्य भी प्रकाशित होगा।
बरिष्ठ साहित्यकार श्री नेत्र सिंह असवाल ने कहा कि महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी बहुत सरल स्वाभाव के व्यक्ति थे। डंडरियाल जी जितने सरल और सीधे थे उनका साहित्य उतना ही अद्वितीय था। हमारा डंडरियाल जी के साथ काफी समय तक साथ रहा। उम्र में डंडरियाल जी मुझसे बड़े थे पर साहित्य व भाषा विमर्श में हम लोगों का चिंतन सनातन चलता रहता था। अब हौर विद्वान साहित्यकारों पर भी काम होना चाहिए । अनुवाद, गोष्ठी व भाषा विमर्श के माध्यम से हम नई पीढ़ी को जोड़ सकते हैं।
उत्तराखण्ड के पूर्व राज्यमंत्री/ बरिष्ठ समाजसेवी व राज्य आंदोलनकारी श्री धीरेन्द्र प्रताप ने कहा कि मैं तो आज सुनने आया हूँ। महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जैसे व्यक्तित्व सदियों में जन्म लेते हैं। स्वभाव से सीधे व सदा ही चिंतनशील, हर परस्थिति में सामान्य रहने वाले डंडरियाल जी ऋषि तुल्य व्यक्ति थे।
बरिष्ठ समाजसेवी दिग्मोहन नेगी ने कहा कि युवा साहित्यकार आशीष सुंदरियाल बढ़िया काम कर रहे हैं। ऐसे ही अकादमिक काम होने से हौर भी कई विद्वान साहित्यकारों के छुपे हुए अप्रकाशित साहित्य समाज के सामने आ सकते हैं।
डंडरियाल जी के सुपुत्र श्री हरिकृष्ण डंडरियाल जी ने अपने पिता को बहुत ही सरल और परिवार को भी अपनी क्षमता से आगे बढ़कर सोचने और करने वाला विदुषी बताया। उन्हने बताया कि डंडरियाल जी ने साहित्य सृजन के लिए जीवन में कभी भी समझौता नहीं किया। यहां तक कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी पर लगातार साहित्य साधना करते रहे, उसी का परिणाम है कि उन्होंने हर विधा में बढ़िया साहित्य लिखा । उन्होंने कहा कि मैं उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी जी और डॉ विनोद बछेती जी का आभारी हूं, जो उन्होंने मेरी एक ईमेल पर संज्ञान लेते हुए हमारे पिताजी के नाम से साहित्य सम्मान की शुरुआत की नहीं तो उन्हें भी किसने जानना था। आशा करता हूँ कि भविष्य में भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे और सभी साहित्यकारों को समय समय पर याद किया जाएगा।
बरिष्ठ गायक अर कत्थक विधा के पारंगत कलाकार श्री जगदीश ढौड़ियाल जी ने कहा कि डंडरियाल जी जैसे विदुषी नसीब से मिलते हैं। उनसे जिसने भी आशीर्वाद लिया, उनकी संगत करी वो बड़े भाग्यशाली हैं। हमें ऐसे लोगों के संध्या में कुछ सीखना चाहिए। कठोर परिश्रम और तपस्या से ही कुछ हासिल होता है, ऐसा नहीं कि थोड़ी सी प्रसिद्धि मिलने पर ही लोग जमीन छोड़ देते हैं। इसके अलावा बरिष्ठ साहित्यकार श्री जबर सिंह कैंतुरा ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि डंडरियाल जी ने अपने जीवन में बहुत बढिया साहित्य रचा है, हम लोग उनकी छाया बराबर भी नहीं हैं। पर हमको लगातार साहित्य सेवा करती रहनी चाहिए।
महाकवि डंडरियाल जी के साथ वर्षों से साये की तरह रहने वाले बरिष्ठ कवि श्री जयपाल सिंह रावत छिप्वडुदा ने अपना संस्मरण सुनकर डंडरियाल जी को याद किया। उन्होंने कहा कि डंडरियाल जी का अप्रकाशित साहित्य अभी भी बहुत है। उस पर काम हो रहा है। युवा साहित्यकार आशीष सुंदरियाल उसपर लगातार काम कर रहे हैं।
इस अवसर पर कई कवियों ने डंडरियाल जी की कविता व कुछ कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। जिनमे प्रमुख थे गढ़वाळी भाषा के पहले पजलकार श्री जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, श्री सुशील बुड़ाकोटी, श्री बृजमोहन वेदवाल, श्री चन्दन प्रेमी, श्री भगवती जुयाल गढ़देशी, श्री रमेश चन्द्र घिल्डियाल सरस, श्रीमती निर्मला नेगी, श्री शशि बडोला, श्री जय सिंह रावत, श्री नीरज बवाड़ी, श्री उमेष चन्द्र बन्दूणी, डॉ पृथ्वी सिंह केदारखण्डी , डॉ कुसुम भट्ट, श्री दीवान सिंह नेगी रिंगूण, श्री रोशन लाल हिंद कवि, श्री ओमप्रकाश ध्यानी, श्री संदीप गढ़वाली, आदि।
सभागार में कई सामाजिक कार्यकर्ता, समाजसेवी, पत्रकार, साहित्यकार, कविगण और जनसरोकारों से संबंध रखने वाले बुद्धिजीवी मौजूद थे। जिनमें श्री जगदीश ढौंडियाल, डॉ हेमा उनियाल, रघुनन्दन उनियाल, डॉ विनोद बछेती, श्रीमती ममता रावत, श्रीमती सुषमा जुगरान ध्यानी, श्री दर्शन सिंह रावत, श्री बृजमोहन वेदवाल, श्री खुशहाल सिंह बिष्ट, श्री नेत्र सिंह असवाल, श्री शशि बडोला, श्री जयपाल सिंह रावत, श्री जय सिंह रावत, श्री दिगमोहन नेगी, श्री मोहन चन्द्र पांथरी, श्रीमती सीमा गुसाईं, श्री नीरज बवाड़ी, श्री विकास चमोली, श्री हरिकृष्ण डंडरियाल, श्री भास्करानंद कुकरेती, श्री रविन्द्र गुडियाल, श्री चारु तिवारी, श्री दीवान सिंह नेगी रिंगूण, श्री युगराज सिंह रावत, श्री गोविंदराम भट्ट, श्री जगमोहन रावत जगमोरा, श्री संजय बोरा, श्री रोशन लाल हिंदकवि, श्री चन्दन प्रेमी, श्री उमेश बंदूनी , डॉ कुसुम भट्ट, श्री ओमप्रकाश ध्यानी, श्री सुशील बुड़ाकोटी, श्रीमती विजयलक्ष्मी नौटियाल, श्री ऋषिकांत ममगाईं, श्री रामपाल किमली, श्री प्रताप थलवाल, श्रीमती रेनू उनियाल, श्री महिपाल सिंह असवाल, श्री जबर सिंह कैंतुरा, श्री सुशील डंडरियाल, श्री धीरेन्द्र प्रताप, श्री कमलेश, श्री मुकेश, श्री मथुरा प्रसाद थपलियाल, श्री प्रदीप तिवारी, सुश्री माता देवी तिवारी, श्री शशि बडोला, डॉ पृथ्वी सिंह केदारखण्डी, श्री मान सिंह घुघतियाल अर श्री वीरेन्द्र सिंह रावत आदि लोग उपस्थित छाया।
दो प्रस्ताव हुए पारित
इस अवसर पर उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी ने दो प्रस्ताव सबके सामने रखे।
1 . गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को भारत सरकार संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करे व उत्तराखण्ड सरकार इस बावत उत्तराखण्ड विधानसभा में चर्चा के बाद एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज कि गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओ को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर जाए।
2 . उत्तराखण्ड में गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी भाषा अकादमी का गठन किया जाए । जब उत्तराखण्ड में हिंदी, पंजाबी, उर्दू, संस्कृत अकादमी है तो फिर गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी अकादमी क्यों नहीं ? राज्य गठन के पच्चीस साल बाद भी हमारी भाषाओं की बात क्यों नहीं हो रही ? इसलिए उत्तराखण्ड में तुरंत गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी अकादमी का गठन होना चाहिए।
उक्त दोनों प्रस्तावों पर सभी लोगों ने अपनी सहमति जताई व हाथ उठाकर दोनों प्रस्ताव पास किये गए।
कार्यक्रम का संचालन उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी एवं बृजमोहन वेदवाल ने संयुक्त रूप से किया।