देवेश जोशी जी की पुस्तक ‘गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध’ का लोकार्पण
देहरादून। गढ़वाल एवं गढ़वाल की सैन्य परम्परा विशेषकर प्रथम विश्व युद्ध में गढ़वाली सैनिकों की भूमिका पर आधारित पेशे से शिक्षक एवं लेखक देवेश जोशी जी की पुस्तक ‘गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध’ का लोकार्पण आज 25 नवंबर को दून लाइब्रेरी देहरादून में हुआ। गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी की अध्यक्षता में हुये इस भव्य कार्यक्रम में उत्तराखंड की मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी जी,पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं साहित्य मर्मज्ञ श्री अनिल रतूड़ी जी एवं दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल जी के करकमलों से लोकार्पित इस पुस्तक में लेखक ने गढ़वाल की सैन्य परम्परा के साथ ही साथ गढ़वालियों के विश्व पटल पर गरिमामयी उपस्थिति का बोध भी पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रदेश की मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी जी ने कहा कि देवेश जोशी जी की इस पुस्तक में गढ़वाल की सैन्य परम्परा के गौरवशाली इतिहास का तो वर्णन है ही, साथ में उस समय के कुछ मार्मिक पत्रों का संकलन भी है। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए पूर्व पुलिस महानिदेशक, लेखक एवं विचारक श्री अनिल रतूड़ी जी ने इस पुस्तक को हिंदी भाषा में लिखी गढ़वाली सैनिकों पर आधारित अपने आप में विशिष्ट कृति बताया। उन्होंने इसे सैन्य परम्परा के इतिहास का दस्तावेज होने के साथ ही साथ एक समाज या समुदाय के रूप में गढ़वाली समाज की पहचान का शोधपरक अध्धयन भी बताया।
अपने लेखकीय संबोधन में श्री देवेश जोशी जी ने पुस्तक पर विस्तृत चर्चा की। उनका कहना था कि सामान्यतः युद्ध के संदर्भ में वीरता या फिर विभीषिका का ही वर्णन किया जाता है परंतु उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध सिर्फ वीरता या विभीषिका की दृष्टि से न देखकर इसे गढ़वाली समाज की विशिष्ट पहचान की दृष्टि से लिखने का प्रयास किया है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल जी ने कहा कि यह पुस्तक एक शोध ग्रंथ है जिसमें सैन्य परम्परा, इतिहास एवं साहित्य का सुन्दर ढंग से समावेश किया गया है। पुस्तक पर अपने विचार रखते हुए श्री ललित मोहन रयाल जी ने पुस्तक के साहित्यिक पक्ष पर विशेष बल देते हुए इस पुस्तक में संकलित गढवाल की सैन्य परम्परा से जुड़े लोकगीतों का जिक्र किया।
लगभग दो घंटे चले इस गरिमामयी कार्यक्रम का समापन गीत, संगीत एवं गायन की त्रिवेणी गढगौरव नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा गाये गये गीत ‘सात समोदर पार त जाणा ब्वे’ के साथ हुआ। इस अवसर पर अनेक सैन्य अधिकारी, गणमान्य लोग, पत्रकार व साहित्यकार उपस्थित रहे जिसमें सर्व श्री शैलेन्द्र नेगी, पद्म श्री कल्याण सिंह रावत ‘मैती’, कुलानंद घनशाला, बलवीर राणा ‘अडिग’, डॉ नंदकिशोर किशोर हटवाल, शांति प्रकाश ‘जिज्ञासू’ चंद्रशेखर तिवारी, ओ पी जमलोकी, दिनेश बिजल्वाण, कीर्ति नवानी, सुंदर बिष्ट एवं सोबन सते सिंह नेगी, श्रीमती सुनीता बौड़ाई ‘विद्यार्थी’, कांता घिल्डियाल आदि प्रमुख हैं। कार्यक्रम का सफल संचालन कुशल संचालक, पत्रकार एवं धाद के संपादक श्री गणेश खुगशाल ‘गणी’ जी के द्वारा किया गया। यह पुस्तक विनसर प्रकाशन, देहरादून के द्वारा प्रकाशित की गई है।