अविचल प्रकाशन दो गढ़वाली व्यंग्य संग्रहों का शानदार प्रकाशन
1 min readमुंबई। वर्तमान कें मुंबई निवासी मूल रूप से उत्तराखंड गढ़वाल के रहने वाले वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक, समालोचक, बालकहानी लेखक, अनेक कृतियों के रचनाकार
भीष्म कुकरेती की दो सद्य प्रकाशित गढ़वाली भाषा में लिखित बेहतरीन दो व्यंग्य संग्रह-
1. “कव्वों ककड़ाट”
2. “कुणकुणाट” संग्रह ।।
दोनों व्यंग्य संग्रहों में सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक के साथ-साथ पारिवारिक, आपसी रिश्तों, संबंधों को व्यंग्यों की विषय वस्तु बनाया है। लेखक ने परिमार्जित एवं सरल सहज रूप में समझ में आने वाली गढ़वाली भाषा में इन की रचना की है । जिसे गढ़वाली के पाठक ही नही कुमाऊंनी के पाठक भी सरलता से पढ़ समझ सकते है इन धारदार, चुटेले, गुदगुदाने वाले और तिलमिलाने वाले, हास्य रस का आनंद देने वाले व्यंग्यों को।
व्यंग्य संग्रह की बड़ी सारगर्भित और सटीक विशलेषण करती भूमिका लिखी है वरिष्ठ साहित्यकार देहरादून निवासी भाई मेहन्द्र ध्यानी “विद्यालंकार” ने। जो संग्रह की उपादेयता को और द्विगुणित करती है, चार चाँद लगाती है।
मुम्बई जैसे आधुनिक महानगर में रहने के बाद भी कृतियाँ लेखक की अपनी मातृभाषा गढ़वाली से प्रेम को भी दर्शाती हैं, जो उत्तराखण्डी भाषा को उज्ज्वलता की और ले जाता है।