अन्नदाताओं की हालात के लिए कौन जिम्मेदार —-

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लेख…..

लेखक – विजय डोभाल

राजस्थान।  किसानों की मांग जायज है, इसमें किसी राजनीति या राजनितिक पार्टियों का पुट भरने की कोशिस न करें , यदि कोई स्वयं को समझदार सोचता है और उसकी संवेदनाएं ज़िंदा है तथा उसके मन में अन्नदाताओं , किसानों के प्रति दुर्भावनायें हैं तो उस पापी को जीने का अधिकार नहीं ।

कुछ गंदे लोग फिर किसानों के इस आंदोलन को भी पिछले आंदोलन की तरह पाकिस्तानी फंडिंग , खालिस्तानी, आतंकवादी आदि से जोड़ने की कोशिस कर सकते हैं ! इसमें किसी भी पार्टी की कोई भूमिका नहीं, देश का अन्नदाता बड़ा समझदार है अपनी बुध्दि , विवेक और चिंतन को केंद्रित कर सोचें जब हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं, देश तरक्की कर रहा है तो किसानों को क्यों नहीं उनकी फसलों पर MSP मिल पा रही है ? किसानों को दोष देने से पहले सोचा किसी ने ? किसानों की ये मांग आज की नहीं ये पचासों साल पुरानी है।
सरकारें आयी – गयी पर सभी की नानी मर जाती है जब MSP पर कानून बनाने की बात आती है ! किसानों का पिछला आंदोलन सालभर चला था , 700 से अधिक किसान शहीद हुए थे तब मोदी जी ने वादा किया था कि मैं तीनों कृषि कानून वापस लेता हूँ , मेरी तपस्या में जरूर कमी रह गयी है , आप अभी आंदोलन ख़त्म कर दो हम सभी मांगें पूरी करने के प्रयास करेंगें ! पर समय बीतता गया , सरकार का ये कार्यकाल ख़त्म होने को है , पर किसानों की आय दुगुनी नहीं हुई , फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून नहीं बना सरकार तीसरे कार्यकाल की ओर अग्रसर है , तो किसान किसके पास जाकर रोयें ? सरकार ही My Baap होती है, अब आंदोलन न करे तो क्या करे ? उसके पास क्या और कोई विकल्प हैं ?
मानते हैं सरकार की भी कुछ लिमिटेशन हैं , पर ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका हल सरकार के पास नहीं , वह चाहे तो अन्नदाताओ की समस्याओं को चुटकियों में हल कर सकती है , किसानों को आंदोलन करने की जरूरत ही क्यों हो ? इस ठंडी , कंपकंपाती सर्दी में कौन घर छोड़कर सड़कों पर धक्के खाना चाहेगा ? उनकी कोई तो मज़बूरी होगी न जब कि लोग रजाइयों में दुबके रहते हैं ! अब चुनाव नजदीक हैं तो दबाव बनाने के प्रयास में वे सड़कों पर ये सोचकर निकल पड़े कि शायद इस बार तो कोई हल निकल जायेगा !
सरकार की दमनकारी नीति देखिये , किसानों को रोकने के लिए क्या क्या करवा रही है , उन्हें आंदोलन तो करने दो पर वह bhi क्यों , देश छावनी बना दिया गया है । आज दिल्ली आने से रोकने के लिए कैसे कैसे अवरोधक पुलिस ने सड़कों पर बिछा दिए ? इतने कड़े , भारी भरकम कीलें , ड्रम , कंक्रीट , कंटेनर , कंटीले तारबंदी तो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर भी नहीं , विदेशी दुश्मनों के साथ भी ये व्यवहार नहीं होता ! किसानों से इतना डर ? सरकार किसानों से क्यों इतना डर रही है ? ये तो अपने लोग हैं , एसा क्यों , नहीं मालूम , अन्नदाता सरकारों के विरोधी नहीं बल्कि सिस्टम के विरोधी हैं, ये आपके वोटर हैं, ये भी सच है —- मोदी सरकार ने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है पर अभी भी और बहुत कुछ करना बाकी , जिससे उनकी आय दुगुनी हो , हालात बेहतर हों , माँगा उसी से जाता है जो दे सके, देश और मोदी जी हैं उस स्थिति में कि अन्नदाता की माँग पूरी कर सके ! बुरे हालातों में आज हमारे अन्नदाता जी रहे हैं।
सरकार अन्नदाताओं के बल पर ही 80 करोड़ गरीब लोगों को फ्री राशन बाँट रही है , जिनके बजूद से वह 10 सालों से राज कर रही है ! हमारे अन्नदाताओं के कारण ही हम हरित क्रांति , श्वेत क्रांति के बल पर आज विश्व में अभिमान से सीना उठाकर बात करते हैं। आज हम जिन पूर्व प्रधानमंत्रियों को गाली देते हैं याद करो — तब हमारे पूर्व प्रधान मंत्री देश वासियों की भूख मिटाने के लिए अमेरिका , रूस , ब्रिटेन , यूरोप आदि देशों से अनाज मांगनें खड़े नजर आते थे , भीख मांगते थे , देश में अकाल , सूखा ग्रस्त रहता था , लाखों लोग भूख से मर जाते थे, तब उनकी प्राथमिकताएं देशवासियों को रोटी देने की थी। पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री जी ने एक समय का खाना , खाना छोड़ दिया था साथ में देश ने भी ऐसा ही किया। धीरे-धीरे स्थितियों को काबू किया गया , पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा खेतीबाड़ी करना, कृषि विश्वविद्यालयों में शोधकर्ताओं ने कृषकों को नयी तकनीकी उपलब्ध कराए, बाँध बनाए गए , बहुउद्देशीय योजनाओं का श्रीगणेश विदेशी सहायता से शुरू हुए और धीरे-धीरे वर्तमान स्थिति में शान से खड़े हैं …
ये नई पीढ़ी क्या जाने गरीबी क्या होती है , भूख किसे कहते हैं ? दूसरों को दोष देना बहुत आसान है , व्हाट्सअप के विद्यार्थी भले ही आज मोदी …. मोदी ……. करते हैं ये अच्छी बात है , करते रहें .. पर थोड़ा 40 – 50 साल पीछे के देश को भी जरूर जान लें ? लेकिन यदि हमें बिना प्रयासों के, बिना मेहनत के निःशुल्क कुछ बड़ा मिल जाता है तो उसका मौल नहीं समझ पाते, नहीं जानते , पूर्व सरकार ने हमें सब कुछ थाली में सजाकर दे दिया है इसलिए उनकी कद्र शून्य है । यदि अन्नदाता , पूर्व सरकारें व देश की जनता मजबूत इरादों , कड़ी मेहनत से खाद्यानों में हमें आत्म निर्भर न बना कर गए होते तो हम आज भी अन्न के लिए भीख नहीं माँग रहे होते ? आज भी हमारी 70% अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है फिर भी किसानों के प्रति इतनी उदासीनता का
ये आलम ? हर घंटे में एक किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है, क्यों ? अंतर उदाहरण से समझिये — छोटा टूथपेस्ट जो 40 साल पहले 50 पैसे या 1 रूपये में आता था उसका मूल्य आज 130 रूपये है और गेंहूं जो तब 5 रूपये किलो था वो आज 20 रूपये किलो है ! कम्पनियों के उत्पादों में 130 गुना वृद्धि जबकि गेंहूँ मात्र 4 या 5 गुना की बढ़ोतरी हो पाई !! है ना आश्चर्य की बात ? टूथपेस्ट पूंजीपति का है वह प्रिंट रेट पर बिकता है ! पर गेंहूँ ? दूसरे अन्न भी इसी राह पर चल रहे हैं !
इसके लिए मात्र वर्तमान सरकार ही नहीं बल्कि सभी सरकारें दोषी हैं , स्वामीनाथन रिपोर्ट की सिफारिश न जाने कब और कौन सरकार लागू करेगा किसानों को इसी की अभिलाषा ! पर सत्ता से ही तो सवाल पूछे जायेंगें न ? जो सत्ता में होता है उसी का तो विरोध होगा । जबाब देने के लिए नेहरू – इंदिरा को तो वापस लाने से रहे ? गलत बात — बीजेपी दूसरों को दोष देने की अपेक्षा आप अपने गिरेबान में झांकें अब दूसरों को दोष देना छोड़ें उससे कुछ हासिल नहीं होने वाला ! जो भी सत्ता में होता है उसी का विरोध होता है , वही सरकार सबसे ज्यादा आँखों में खटकती है ! आशा पाठक शांतिपूर्वक लेख पर चिंतन मंथन कर वस्तुस्थिति को समझने का प्रयास करेंगें ! लेख में किसानों के प्रति अवश्य सम्वेदननायें और सम्मान है , पर किसी व्यक्ति या सरकार के प्रति द्वेषभाव नहीं ! वर्तमान सरकार से अपेक्षाएँ हैं तो हैं, मोदी जी जरूर अन्नदाता की मांगों को पूर्ण करेंगें ….. !!
धन्यवाद !

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