देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल का समापन, उषा उत्थुप ने दी मनमोहक प्रस्तुति…….

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देहरादून। दून इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित देहरादून लिटरेचर फ़ेस्टिवल (डीडीएलएफ) के सातवें संस्करण का अंतिम दिन विचारपूर्ण चर्चाओं, संवाद और अनुभवों के साथ पूरा हुआ। दिन की शुरुआत “द लिविंग हिमालयाज़ बैलेंसिंग प्रोग्रेस विद सस्टेनेबिलिटी” सत्र से हुई, जिसका संचालन पर्यावरणविद् अनूप नौटियाल ने किया। उन्होंने उत्तराखंड की नाज़ुक पारिस्थितिकी, बढ़ती जनसंख्या, बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं और पिघलते ग्लेशियरों पर चिंता जताई। उन्होंने छात्रों से सतत विकास के लिए जागरूक रहने और अत्यधिक पर्यटन व अनियोजित विकास पर प्रश्न उठाने की अपील की। इसके बाद “एजूकेशन इन एन इंटरकनेक्टेड वर्ल्ड इंटरनेशनल स्कूल्स इन इंडिया” सत्र में डोमिनिक टोमालिन और नाओमी एटकिंस ने भाग लिया। टोमालिन ने श्रूज़बरी स्कूल की खेल विरासत और भारत में इसके विस्तार पर बात की, जबकि एटकिंस ने बेडफ़ोर्ड स्कूल की उपलब्धियों और भारत में इसके नए कैंपस के बारे में साझा किया।
“इंडिया/2047 ए सेंचुरी-यंग नेशन” में जनरल मनोज नरवणे, आदित्य पिट्टी और रंजीता घोष ने सहभागिता की। जनरल नरवणे ने भारत की विकास गति, तकनीकी बदलावों और महिलाओं की समान भागीदारी के महत्व पर जोर दिया। “द इंडियन प्लेट दृ ट्रेडिशन, टेस्ट एंड ट्रबल” में पोषण विशेषज्ञ रुजुता दिवेकर ने कहा, “अच्छा स्वास्थ्य बहुत सरल है यह घर के बने भोजन और सरल आदतों से शुरू होता है। जितना हम पैकेज्ड और प्रोसेस्ड फूड की ओर जाते हैं, उतनी ही जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का जोखिम बढ़ता है। अगर आपके खाने को विज्ञापन की ज़रूरत है, तो वह आपके लिए अच्छा नहीं है। और सबसे ज़रूरी, अपने शरीर को कभी भी कोसें नहीं।” इसके बाद “फ़्रैक्चर्स एंड बैंडेज पार्टिशन नैरेटिव्स” में भावना सोमाया और निष्ठा गौतम ने ‘फेयरवेल कराची’ के संदर्भ में विभाजन की कहानियों पर चर्चा की। “आर्किटेक्ट्स ऑफ़ चेंज दृ क्राफ्टिंग पर्सनल एंड पॉलिटिकल हिस्ट्रीज़” में सुगाता श्रीनिवासराजू और रवि चोपड़ा ने अपने अनुभवों के आधार पर बदलती राजनीति के दस्तावेज़ीकरण पर विचार साझा किए। अक्षत गुप्ता और सौम्या कुलश्रेष्ठ के सत्र में गुप्ता की लेखन यात्रा और बदलते विषयों पर चर्चा हुई।
दिन के लोकप्रिय सत्रों में “पेन, पावर, प्रोवोकेशन दृ अनफ़िल्टर्ड, विद शोभा डे” शामिल रहा, जहां उन्होंने शुभी मेहता के साथ अपनी लेखन प्रक्रिया, व्यक्तित्व और आज के समय में शब्दों के प्रभाव पर बात की। “साहित्य, सिनेमा, समाज” में गुरपाल सिंह, असीम बजाज, पीयूष पांडे और भरत कुकरेती ने कहानी, समाज और सिनेमा के संबंधों पर चर्चा की। “पिक्चर अभी बाकी है” में प्रीत कमानी, शुभी मेहता और चंदन रॉय ने अपने अभिनय करियर और अनुभवों पर बात की। “सुनो कविता बोल रही है” में गोपाल दत्त ने अपनी रचनात्मक प्रक्रिया साझा की। शाम को “एट द इंटरसेक्शन ऑफ़ सिनेमा एंड सोसाइटी” में नंदिता दास ने समाज और सिनेमा के संबंधों पर अपने विचार रखे।दिन में रोशेल पोटकर ने हाइकू लेखन की कार्यशाला भी संचालित की। अन्य सत्रों में “लैंडस्केप्स ऑफ़ लॉन्गिंग एंड बिलॉन्गिंग” (सुमना रॉय), “वर्स ऐज़ विटनेस दृ पोएम्स ऑफ़ ग्रीफ़, नेचर एंड रेसिस्टेंस” (एमी सिंह, कुंजना पराशर, सुरभि गुप्ता), और “जश्न-ए-इश्क़ दृ राइटिंग ए कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ लव एंड प्लेज़र” (अरुंधति घोष, अरविंद नरैन, निकिता दहिया) शामिल रहे। “क्लिक्स, कल्चर, कनेक्शन दृ मैसेजिंग फॉर द न्यू एज कंज़्यूमर” में निकिता गुप्ता, मिस्टर टिक्कू, रिचा चौधरी और मानिक कौर ने आधुनिक डिजिटल संचार पर अपने विचार रखे। “एस्ट्रोलॉजी फ़ॉर एवरीवन” में दीपांशु गिरि ने ज्योतिष के कई पहलुओं को समझाया। फेस्टिवल का समापन उषा उत्थुप के लाइव संगीत कार्यक्रम से हुआ, जिसमें उनकी आवाज़ और ऊर्जा ने पूरे दर्शकों को उत्साहित कर दिया। फेस्टिवल के समापन पर डीडीएलएफ के संस्थापक समरांत विरमानी ने कहा, “डीडीएलएफ के सातवें संस्करण के समापन पर मुझे अत्यंत गर्व और आभार का अनुभव हो रहा है। तीन दिनों में हुई हर बातचीत और हर प्रस्तुति ने इस फेस्टिवल की पहचान को और मजबूत किया है। दर्शकों का उत्साह और भागीदारी सबसे अधिक प्रेरणादायक रही। डीडीएलएफ अब एक वार्षिक परंपरा बन चुका है, और आने वाले वर्षों में हम इसी उत्साह के साथ कहानियों और विचारों का उत्सव मनाते रहेंगे।”

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