जलवायु परिवर्तन ने बिगाड़ा फसल चक्र – जुगलान

श्यामपुर ऋषिकेश। मानसून की विदाई के बाद बारिश को थमे आधा सप्ताहभर हो चुका है लेकिन न खेत सूखने का नाम ले रहे हैं न फसल ही सूख रही है।ग्राम सभा खदरी खड़क माफ के किसान पुरण सिंह सोहन सिंह ने बताया कि बीते एक सप्ताह से धान की अधपकी फसल गिर गई है लेकिन न खेत सूख रहे हैं न फसल ही सूख रही है।अंतर्राष्ट्रीय क्लाइमेट एक्शन लीडरशिप अवॉर्ड से सम्मानित पर्यावरणविद डॉ विनोद प्रसाद जुगलान का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण न केवल मौसम में परिवर्तन हुआ है बल्कि फसल चक्र भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। अत्यधिक और असामयिक बारिश के परिणाम स्वरूप धान की फसल की ऊंचाई बढ़ने से फसल पकने से पहले ही या तो गिर गई या फिर उसके दाने को सूखने में देरी होने के कारण ऊपज प्रभावित हो रही है। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है।दूसरी ओर वन्य जीवों और निराश्रित पशुओं से परेशान किसानों को अपनी फसल काटनी पड़ रही हैं। परिणाम स्वरूप फसल की पैदावार कम हो गई है। इससे किसानों की आर्थिकी प्रभावित हो रही है। पर्यावरण संरक्षण अब सामुदायिक चिंतन का महत्वपूर्ण विषय है।इस ओर मिलजुलकर प्रयास करने होंगे। पर्यावरण संरक्षण की जनजागरुकता को सामाजिक आन्दोलन बनाकर कार्य करना होगा। हमें परम्परागत खेती के अतिरिक्त नई तकनीकी और नए बीजों के प्रयोग से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकेगा।उन्होंने कहा अगली बार फसल बुआई करने से पहले बौनी किस्मों का चुनाव और खेतों को कम सिंचाई करने पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर कार्यवाही के रूप में हमें प्रदूषण नियंत्रण सम्बंधी विभिन्न उपायों को लागू करना होगा। इसमें पहला उपाय है प्लास्टिक के प्रयोग को न्यूनतम किया जाए। साथ ही धुएं वाले वाहनों का प्रयोग कम से कम किया जाना चाहिए। आने वाले समय में प्रदूषण नियंत्रण किया जाना जरूरी है। सरकार और नीतिकारों सहित आमजन को भी इस ओर ध्यान देना होगा।

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