उत्तराखंड में लगातार बढ़ती जा रही ऊर्जा डिमांड…

प्रदेश में सालों से लटके है कई पावर प्रोजेक्ट

सरकार की 21 परियोजनाओं पर टिकी लोगों की आस

विद्युत की डिमांड पीक सीजन में 2600 मेगावाट प्रतिदिन तक पहुंची

देहरादून । आपदाओं से जुड़ी आशंकाओं के बीच प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हमेशा राज्य के लिए दूभर रहा है। शायद यही कारण है कि राज्य की सबसे बड़ी ताकत माना जाने वाला एनर्जी सेक्टर आज राजकोष पर भारी पड़ रहा है। स्थिति ये है कि उत्तराखंड में विद्युत डिमांड लगातार बढ़ रही है। इस समस्या का समाधान करने वाली जल विद्युत परियोजनाएं पिछले एक दशक से न्यायिक प्रक्रिया में फंसी हुई हैं। उत्तराखंड के पास ऊर्जा संकट से उबरने का एकमात्र रास्ता जल विद्युत परियोजनाएं हैं। लेकिन पिछले एक दशक से जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर चल रही लड़ाई अब भी जारी है। कानूनी नूरा कुश्ती के बीच उत्तराखंड के लिए मुसीबत ये है कि एक तरफ राज्य को प्राकृतिक खतरों से निपटना है, तो दूसरी तरफ प्राकृतिक संपदा का संतुलित दोहन कर जरूरतों को भी पूरा करना है। लेकिन एनर्जी सेक्टर में कानूनी दांव पेंच के कारण राज्य ऐसा नहीं कर पा रहा है। फिलहाल, उत्तराखंड सरकार की नजर उन 21 परियोजनाओं पर है, जिन्हें मंजूरी मिलती है तो प्रदेश काफी हद तक अपनी विद्युत की डिमांड को पूरा कर सकता है।
फिलहाल विद्युत आपूर्ति पूरी कर पाना सरकार के लिए आसान नहीं है। इसकी वजह यह है कि राज्य में लगातार विद्युत की डिमांड बढ़ती जा रही है। जबकि उस लिहाज से उत्पादन नहीं बढ़ पा रहा है। प्रदेश में विद्युत की डिमांड पीक सीजन में 2600 मेगावाट प्रतिदिन तक पहुंची है। जबकि उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड का सर्वाधिक उत्पादन 900 मेगावाट से 1000 मेगावाट तक का ही है। इस तरह 1600 मेगावाट से ज्यादा की बिजली केंद्रीय पूल या खुले बाजार से खरीदकर राज्य को मिलती है। सामान्य तौर पर बिजली की डिमांड करीब 2 हजार से 2100 मेगावाट तक होती है। ऐसे ही उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड समानता पर 300 से 400 मेगावाट की बिजली का उत्पादन करता है।
उत्तराखंड में लगातार बिजली की डिमांड बढ़ रही है। इसे प्रतिवर्ष के तौर पर करीब 3.7 से 5.5 फीसदी तक बढ़ोत्तरी के रूप में देखा जा रहा है। जबकि हर साल उत्तराखंड तकरीबन 1000 करोड़ की बिजली खरीद रहा है। जिससे उत्तराखंड के राजकोष पर बड़ा बोझ पड़ रहा है। उत्तराखंड में तमाम नदियों की मौजूदगी के चलते राज्य सरप्लस बिजली उत्पादन की क्षमता रखता है। यानी तकरीबन 20 हजार मेगावाट तक का विद्युत उत्पादन राज्य में हो सकता है। लेकिन अभी प्रदेश में 4249 मेगावाट की क्षमता वाले प्रोजेक्ट ही लगाए गए हैं।
उत्तराखंड सरकार राज्य में उन 21 परियोजनाओं को शुरू करने की मंजूरी चाहती है, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीसरी कमेटी ने हरी झंडी दी थी। हालांकि केंद्र के जल शक्ति मंत्रालय को इन परियोजनाओं पर घोर आपत्ति है। दरअसल, केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जल विद्युत परियोजनाओं पर स्वतरू संज्ञान लेते हुए गंगा और सहायक नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं को शुरू करने पर रोक लगाई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर प्रस्तावित 24 परियोजनाओं का अध्ययन कर रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी दी थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में परियोजनाओं को आगे न बढ़ाने की सिफारिश की थी। हालांकि, इसके बाद परियोजनाओं से जुड़ी कुछ कंपनियां फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंची और इसके बाद 2015 में आईटीआईटी कानपुर के विनोद तारे की अध्यक्षता में दूसरी कमेटी बनाई गई। इस कमेटी ने भी जल विद्युत परियोजनाओं के चलते विभिन्न खतरों की आशंकाओं को व्यक्त करते हुए परियोजनाओं को शुरू करने के दावे के खिलाफ अपनी रिपोर्ट दी।

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