बेनाम ग्लेशियर का बढ़ रहा लगातार आकार, वैज्ञानिकों की बढ़ रही चिंता

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देहरादून। उत्तराखंड से ग्लेशियर को लेकर एक रोचक जानकारी सामने आ रही है। देश दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिसके चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। लेकिन तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर्स के बीच कुछ ऐसे भी ग्लेशियर हैं, जिनका दायरा लगातार बढ़ रहा है। दरअसल, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड के धौली गंगा बेसिन में मौजूद एक बेनाम ग्लेशियर अपने एरिया को एक्सपेंड कर रहा है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद लगभग सभी ग्लेशियर तो पिघल रहे हैं, लेकिन एक ग्लेशियर का आकार मात्र एक महीने में करीब 863 मीटर बढ़ गया था। साथ ही उसका एरिया साल दर साल बढ़ता जा रहा है। आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की वास्तविकता और वजह।
उत्तराखंड के हिमालय में हजारों की संख्या में ग्लेशियर मौजूद हैं। लेकिन देश दुनिया के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। जहां एक ओर ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने एक खुशखबरी दी है।
वाडिया के वैज्ञानिकों ने बेनाम ग्लेशियर का अध्ययन किया है जो अपने क्षेत्र को बढ़ा रहा है। चमोली जिले के धौली गंगा बेसिन में दो ग्लेशियर के बीच मौजूद एक बेनाम ग्लेशियर पर वाडिया के वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है। इस ग्लेशियर का आकार करीब 48 वर्ग किलोमीटर है। ये ग्लेशियर नीति घाटी (वैली) में मौजूद रांडोल्फ और रेकाना ग्लेशियर के समीप है। समुद्र तल से इस ग्लेशियर की ऊंचाई करीब 6,550 मीटर है।
दरअसल, हाल ही में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी के ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ। मनीष मेहता की टीम का एक रिसर्च पेपर बहु-कालिक उपग्रह डेटा का उपयोग करके मध्य हिमालय में ग्लेशियर की वृद्धि की अभिव्यक्तियाँश् पब्लिश हुआ है। इसमें इस बेनाम ग्लेशियर का एरिया सर्ज की बात कही गई है। इस रिसर्च पेपर के अनुसार, ये अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है कि न सिर्फ ग्लेशियर से संबंधित ज्ञान को बढ़ाया जा सके, बल्कि सर्ज प्रकार के ग्लेशियरों के स्थानों और उनके व्यवहार के बारे में जाना जा सके, ताकि इन ग्लेशियरों से आने वाली आपदाओं के खतरनाक प्रभावों से बचा जा सके।

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