समाज में बढ़ती घृणा और कटुता हमारी सभ्यता के विरुद्ध : डॉक्टर करण सिंह
1 min readनई दिल्ली ( डा. बी.आर.चौहान )। बढ़ते आधुनिकरण में आज भले ही नई तकनीकी के जरिये ,लोग विकास की नई परिभाषा को साकार करने में जूटे हो लेकिन जिंदगी के मायने व उसका एहसास जानना हो तो उसके लिए किसी मोबाइल या कंप्यूटर का ज्ञान जरूरी नहीं उसके लिए किताबों व साहित्य पढ़ना बेहद जरूरी है। इसके जरिये लेखक व साहित्यकारों के जीवन के उन अनुभव को जानने समझने की जरूरत है जिससे देश व समाज के हित मे कुछ करने की प्रेरणा जागृत हो।लक्ष्मी दास जी द्वारा लिखित आत्मकथा “संघर्ष की आपबीती”पुस्तक के विमोचन अवसर पर कई साहित्यकारों ने जीवन से जुड़ी कई बातों को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है जिन्हे पढ़कर आनंद की अनुभूति के साथ देश के अनसुलझे पहलुओं का जानने समझना का अवसर मिला है। आज के भौतिक युग में युवाओं के ऐसे कार्यक्रमों व समारोह में जुड़ना बेहद जरूरी है। तभी देश व समाज से जुड़े मुद्दों पर युवा पीढ़ी सही निर्णय लेने में सक्षम हो सकेगी।
आज समाज में घृणा और भाषा में कटुता का भाव बढ़ता जा रहा है। हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में इसकी दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं ,यह एक बड़ी चिंता का विषय है। यूक्रेन, रूस , इसराइल, लेबनान और सीरिया आदि देशों की युद्ध विभीषिका से मानवता खतरे में है। यह विचार वयोवृद्ध दार्शनिक , पूर्व सदरे रियासत (जम्मू कश्मीर ) पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राज्यसभा सांसद डॉक्टर करण सिंह ने व्यक्त किया। डॉ करण सिंह नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में प्रसिद्ध गांधीवादी लक्ष्मी दास जी द्वारा लिखित आत्मकथा “संघर्ष की आपबीती” पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे।
उन्होंने श्री लक्ष्मीदास जी कि इस संघर्ष गाथा का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रत्येक मानव के जीवन में संघर्ष के क्षण आते हैं परंतु सत्य और जीवन मूल्यों का आधार उनका पथ प्रदर्शक भी बनता है। उन्होंने अपने वर्षों के राजनीतिक जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने भी अनेकों संघर्षों का सामना किया। उन्होंने कहा कि गीता और उपनिषद जैसी मार्गदर्शक ग्रंथ को परिवर्धित नहीं किया जा सकता परंतु संविधान को मानवीय सापेक्षता के अनुसार परिवर्धित किया जाता रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे देश को आजादी अहिंसा के द्वारा मिली , परंतु आजादी के उपरांत हुई हिंसा एक भयानक त्रासदी थी जिसमें हजारों लोगों ने अपनी जान गवाई और बेघर हुए। उसको नहीं भूलाया जा सकता। आज भी पिछड़ी वर्गों, आदिवासियों को उनका अधिकार देने की आवश्यकता है। पुस्तक के लेखक श्री लक्ष्मी दास ने संघर्ष की आप बीती पुस्तक के बारे में कहा कि यह उनके जीवन का दस्तावेज है , जिसको उन्होंने पल-पल जिया है। हिमाचल में उनके बहुत ही सामान्य परिवार को सामाजिक बहिष्कार जैसे उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। तत्पश्चात गरीबि का अभिशाप झेलते हुए अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत की। सामाजिक जीवन में विभिन्न स्तरों पर कटु अनुभव का सामना भी किया , यह सब लिखना बहुत कठिन कार्य था परंतु सत्य के बल पर यह सब संभव हुआ। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कर्नाटक की कानून एवं पर्यटन मंत्री डॉ. एच. के. पाटील ने कहा कि लक्ष्मी दास जी ने अपनी आत्मकथा संघर्ष की आपबीती में अपनी सामाजिक सरोकारों , नैतिक व सामाजिक मूल्यों का निर्वहन किया है। वह बधाई के पात्र है। उन्होंने चिंता जाहिर की कि आज गांधीवादी विचारधारा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। राजनीतिक संरक्षण के बिना चल रही गांधी संस्थाओं के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। इस अवसर पर पुस्तक के प्रकाशक , एवं गणमाननीय व्यक्तियों द्वारा मुख्य अतिथि डॉक्टर करण सिंह एवं अध्यक्षता कर रहे डॉक्टर एच. के. पाटील एवं लक्ष्मी दास जी का भव्य स्वागत किया गया। इस मौके पर दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव रमेश नेगी, ध्रुव अग्रवाल ,चार्टड एकाउंटेंट व समाजसेवी और डॉ रमेश कुमार पासी, अंतरराष्ट्रीय पीस मिशन के अध्यक्ष भी उपस्थित थे। समारोह में दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री रहे मंगतराम ,, हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ .शंकर कुमार सान्याल, गांधी शांति प्रतिष्ठान के श्री कुमार प्रशांत , सुधाकर जी , अन्नामलाई , डॉ कमल टावरी , श्री ओ. पी. शर्मा श्री बी. आर.शर्मा , प्रोफेसर धनंजय जोशी , डॉ अजय कौशिक , डॉ राजीव रंजन एवं डॉक्टर बी आर चौहान की अतिरिक्त सैकड़ो गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।