आपदा न्यूनीकरण जागरूकता लौंग टर्म रिकवरी विषय पर कार्यशाला की आयोजित….
1 min readदेहरादून । देहरादून होटल द्रोड परिसर में आज आयोजित कार्यशाला आपदा न्यूनीकरण जागरूकता लौंग टर्म रिकवरी विषयक, द्वितीय दिवस पर प्रथम तकनीकी सत्र पर चेयरपर्सन भूवर्पूव कुलपती पचौरी, पैनलीस्ट डॉ0 डी.पी. कानूनगो, सी.सी.आर.आई रूड़की, प्रो0 विक्रम यादव, यू.पी.इ.एस. डॉ0 विनोद कुमार कुरार, वैज्ञानिक सी.आर.आर.आई दिल्ली द्वारा लौंग टर्म रिकवरी पर आधारित वार्ता की गयी। द्वितीय सत्र में विल्डीग वैक बैटर पर चेयर परसन प्रो0 चन्दन घोस, पैननलिस्ट के रूप में श्री सन्तान् सरकार यू.एल.एम. ठुकराल, एन.आई.एच रूड़की द्वारा भी रिकन्स्ट्रकशन रणनीति पर चर्चा की । तृतीय सत्र में चेयर परसन प्रो0 श्रीवास्तवा, डॉ0 विमलेस जोशी सहायक निदेशन स्थास्थ्य विभाग के द्वारा ईकोनोमिक रिकवरी एवं मनोवैज्ञानिक सहायता पर चर्चा की ।
इस अवसर पर प्रतिभागियों को प्रमाण्र पत्र भी वितरीत किये गये । अन्त में कार्यक्रम निदेशन डॉ0 मंजू पाण्डे , आन्नद शर्मा, डॉ0 सनातन सरकार, डॉ0 पवन कुमार, डॉ0 एल.एम. ठकुराल द्वारा वार्ता की गयी।
कार्यशाला के समापन के अवसर पर डॉ0 मंजू पाण्डे द्वारा कार्यशाला में निकले निष्कर्ष रिकमन्डेसन्स को शासन स्तर पर प्रेषित किये जाने हेतु आशास्व किया। डॉ0 ओमप्रकाश ने अकादमी महानिदेशक सचिव आपदा प्रबन्धन, अपर सचिव आ0प्र0 यू.एस.डी.एम.ए. सभी पैनलिस्ट सभी प्रतिभागीयों का आभार व्यक्त किया।
इससे आयोजित कार्यशाला के प्रथम दिवस को सत्र में आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई। सत्रों में जलवायु परिवर्तन, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, और आपदा तैयारी को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया। आपदा न्यूनीकरण के लिए तकनीकी और सामुदायिक प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया, जैसे जंगल की आग और भूस्खलन के लिए जोखिम मानचित्रण और स्थानीय समुदायों को जागरूक करना। आपदा प्रबंधन में नई तकनीकों, जैसे GIS रिमोट सेंसिंग, और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाने पर चर्चा हुई। साथ ही, आपदा तैयारियों में सामुदायिक भागीदारी और व्यवहार परिवर्तन के महत्व को रेखांकित किया गया। सत्र में दीर्घकालिक रणनीतियों और सतत विकास पर विशेष ध्यान दिया गया।
सत्र में आपदा प्रबंधन और आपदा न्यूनीकरण के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई। उद्घाटन सत्र में, राजकुमार नेगी ने आपदा प्रबंधन को सतत विकास और धरातल पर लागू समाधानों के साथ जोड़ा। आनंद स्वरूप ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की आवश्यकता पर जोर दिया। शेखर पाठक ने व्यक्तिगत आपदा अनुभव साझा करते हुए बेहतर निर्माण गुणवत्ता और उत्तराखंड में पर्यटकों के लिए आपदा तैयारियों की बात कही। डीएम अल्मोड़ा और डीएम चंपावत ने स्थानीय आपदाओं और उनकी रोकथाम के लिए स्मार्ट समुदायों और नई दिशानिर्देशों की जरूरत पर जोर दिया। आनंद शर्मा ने तीन चरणों- तैयारी, राहत और पुनर्निर्माण- पर प्रकाश डाला।
पहले सत्र में, पवन कुमार ने जलवायु परिवर्तन और नई तकनीकों को शामिल करने की बात की। पूरन बारतवाल ने हिमालय क्षेत्र की नाजुकता और तीव्र शहरीकरण पर चर्चा की। प्रदीप मेहता ने आपदा तैयारी में निवेश और जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई।
दूसरे सत्र में, अरिजीत रॉय और हरीश कर्नाटक ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और CAP प्रणाली के उपयोग से आपदा प्रबंधन की संभावनाओं पर चर्चा की। रोहित थपलियाल ने प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के चार स्तंभों पर प्रकाश डाला।
तीसरे सत्र में, निशांत वर्मा ने स्थानीय समुदायों को शामिल कर जंगल की आग से निपटने की रणनीतियां साझा कीं। कल्याण सिंह रावत ने आपदाओं के लिए ईको-फ्रेंडली विकास और प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण पर जोर दिया। सुनीत नैथानी ने दीर्घकालिक रणनीतियों और ग्राम-स्तरीय डिजिटलीकरण पर बल दिया।
चौथे सत्र में, पवन कुमार सिंह ने युवा आपदा मित्र योजना और व्यवहारिक जागरूकता पर बात की। रेखा रानी ने भूस्खलन जोखिम मानचित्रण और भूस्खलन ऐप पर जानकारी दी। गैयरोला ने जीआईएस और रिमोट सेंसिंग की उपयोगिता समझाई। कुल मिलाकर, कल के सत्र में आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझा गया।