हिमाचल कू पैलो सेब बागान कुल्लू मा 1870 मा लग,
1 min readसरोज शर्मा (भोजन मूल शोधार्थी)
हिमाचल प्रदेश मा सेब की किस्मों का पौधा ल्याण कु श्रेय अंग्रेजू कु जांद, सबसे पैल बढिया किस्म क सेब का पौधा कुल्लू घाटी मा भैर देश बटिक मंगै गैन, वै क बाद शिमला क कोटगढ मा सबसे बड़िया किस्म लयै गैन 162 वर्ष पैल हिमाचल मा सेब का कूई बगीचा नि हूंद छाई, कुदरती सेब हूंद छा जु खाणा मा खट्टा हूंद छाई,स्थानीय लोग सब्जी बनाण मा प्रयोग करदा छाई, सन 1846 ई म कुल्लू अंग्रेजो क अधीन ह्वाई कुल्लू का पैल उपायुक्त मेजर लार्ड विलियम बणी क अंय, धीरे धीरे अंग्रेज कुल्लू कि तरफ आण बैठिन शिकार और सैरगाह कु आनंद लीण कु, जब उपायुक्त न दयाख यखक जलवायु सेब खुण बढ़िया च, वैल सेब उत्पादन कु अपड़ साथियों थैं बढ़ावा दयाई, हिमाचल मा सबसे पैल सेब कु पौधा 1870 मा इंग्लैंड से कैप्टन आर सी ली लैन, वु सेवानिवृत्त हूणक बाद कुल्लू अयं और कुल्लू से पांच किलोमीटर अगनै बंदरोल मा 38 एकड़ जमीन खरीदिक अपणा पिता से सेब नाशपाती और चेरी का पौधा मंगैन, यूं मा सात किस्म क बाल्डवीन, स्टैफेडपिपिन, वाईन सेब, थेलो, न्यूटन, ग्रेनीसिमिथ, विनटर सेब कि किस्म छै, नाशपाती मा विलियम फेवरिट, वार्टलेट इस्टर् वेवेर,डैनी ड्यू, कोमिस आदि किस्म छै,
ली क बाद वैक आइरिस मित्र आर्थर थामस बैनन 1975 मा मनाली मा जमीन खरीदिक बगीचा लगाई जु सनशाइन आर्चडस क नाम से जणै ग्या, ऐ क बाद दुसर ब्रिटिश परिवार वलो न भि बागबानी क अनुसरण कार,बंशीलाल सेब बागान लगाण वल पैल मूल निवासी छा, पैनेलपी चैटवुड न 1972 मा अपणि किताब कुलू:द एन्ड आफ द हैबिटेबल वल्र्ड मा कैप्टन ली कु फल उधोग क अग्रदूत बताई, सन 1915 तक कुल्लू मा दस अंग्रेज सेब क बागान लगै चुका छाई, भैर बटिक लयां किस्म अधिक मात्रा मा तैयार हूण लगी त सेब जोगिन्दर नगर भिजै जाण लगे, यातायात की सुविधा न हूण से ठूलै क काम कुलियों से लिये जांद छा, 16 किलो वजन एक कुली 10 किलोमीटर चलण पवडद छा हर पड़ाव मा 200 कुली हूंद छाई जौंथै चौबीस घंटे म 120 किलोमीटर क दूरी तय करण पवडदि छै,
अंग्रेजु न डाक सेवा और सेब क ढुलै कि सुविधा खुण 1902 मा पैल डाक घर ख्वाल, अब डाक पार्सल से पांच किलोग्राम सेब भिजैण बैठ ग्ये, डाक क आदान प्रदान लगघाटि भू-भू जोत कडोन ह्वै क जोगिंदर नगर बैजनाथ तक भिजैण लगीं,
1926 मा सड़क निर्माण विल्ली डोनाल्ड न कार और पैल बार अपणि कार ल कुल्लू आई, 1928 मा छोटा ट्रक और छवटी बस भि चलण लगिन, तब भि अंग्रेज सेब ढुलै क काम कुलियो से ही करांदा छाई किलैकि सेब अधिक सुरक्षित रैंद छाई और सस्तू भि पवडद छाई, 1947 क बाद स्थानीय लोग भि बागवानी कि तरफ आकर्षित हूण लगिन, वै बगत कुल्लू पंजाब मा शामिल छाई कुल्लू मा सेब क तरफ रूझान देखिक पंजाब सरकार न पैल बागबानी विभाग क कुल्लू क सेऊबाग मा फल संतती प्रदर्शन कार, उधान मा अच्छी किस्म क सेब नर्सरी उपलब्ध करै,1957 मा माली प्रशिक्षण केंद्र बजौरा म खुलै ग्या जै म बागवानी और सेब क बार मा प्रशिक्षण दियै ग्या, बागवानो कि सुविधा खुण 1856-57 म चवाई आनी 1861-62 मा बालागढ बंजार व लुगडभटटी, 2969-70 बजौरा तथा 1977-78 मा बालागढ मा फल संतति और प्रदर्शनी उद्यान स्थापित किये गैन जै मा पौध खाद दवा उपलब्ध करये जांद छाई, 1986 मा बजौरा म बागवानो कि सुविधा खुण कृषी अनुसंधान केंद्र खवलै ग्या, जै मा फल सब्जियों कि बड़िया किस्मो मा अनुसंधान कैरिक जानकरी दियै जांद, कुल्लू मा बड़िया किस्म क सेब तैयार हूंद यातायात क साधन सुगम हूण से कुल्लू क सेब भैर मंडियो मा भिजै जांद।