दसलक्षण पर्व के उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म पर की भगवान की पूजा अर्चना….

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देहरादून । संस्कार प्रणेता ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्तोत्र उत्तराखंड के राजकीय अतिथि आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में दसलक्षण पर्व का उत्तम ब्राह्मचर्य धर्म पर भगवान की पूजा अर्चना की गयी। जैन धर्म के बारहवें तीर्थकर भगवान वसुपूज्य स्वामी का मोक्ष कल्याणक मनाया गया। मनोहर लाल धर्मार्थ चिकित्सालय तिलक रोड द्वारा स्वास्थ्य शिविर कैंप लगाया गया। जिसमें विभिन्न प्रकार की जांच निशुल्क की गई और औषधि वितरण किया गया। आज मूलनायक भगवान् महावीर स्वामी की शांतिधारा करने का सौभाग्य सचिन जैन शक्ति विहार, पांडुकशिला पर शांतिधारा करने का सौभाग्य सार्थक जैन अद्विक जैन, एवं श्रीदेव जैन शुभम जैन आदि जैन ध्रुव जैन आहाना ट्रेडर्स, अशोक जैन राजीव जैन सात्विक जैन को प्राप्त हुआ।
इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री ने प्रवचन करते हुए कहा कि प्रभु विचरते विचरते चपापुरी पधारते हैं। वहां मासक्षमण का तप करके कार्यात्सपी मुद्रा में छः सौ के साथ अषाढ़ सुद चौदस के दिन मीन राशि और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में मोक्ष में गये। तब प्रभु का चारित्र पर्याय चौवन लाख वर्ष और बहत्तर लाख वर्ष का आयुष्य पूर्ण हुआ। प्रायः प्रभु का शासन तीस सागरोपम छियासठ लाख छब्बीस हजार वर्ष चला था। प्रभु के शासन में एक दिन बाद मोक्ष मार्ग शुरू हुआ वो संख्यात पुरुष पाट परंपरा तक चला था। उत्तम’ ब्रह्मचर्य’ का अर्थ है निजात्मा और ’चर्य’ का अर्थ है आचरण करना या लीन होना। अतः ब्रह्मचर्य से तात्पर्य निज आत्मा में लीन होना। साधारण बोलचाल में ब्रह्मचर्य से तात्पर्य स्त्री से संसर्ग के त्याग को ब्रह्मचर्य कह दिया जाता है लेकिन बाह्य में स्त्री, घर-बार छोड़ देना लेकिन अंतरंग से विषयों का त्याग न करें तो यह ब्रह्मचर्य नहीं कहलाता। निश्चय से ज्ञानानन्द स्वभावी निज आत्मा को निज मानना, जानना और उसी में रम जाना, लीन हो जाना ही उत्तम ब्रह्मचर्य होता है अर्थात् अपने ’ब्रह्म’ में चर्या करना ही वास्तव में ब्रह्मचर्य है जो साक्षात् मोक्ष का कारण है।
अनंत चतुर्दशी के अवसर पर जैन समाज द्वारा भव्य शोभायात्रा नगर में निकली गयी। जो श्री दिगंबर जैन पंचायती मंदिर जैन भवन गांधी रोड से प्रारम्भ होक्त तीर्थंकर महावीर चौक,झंडा बाजार, मोती बाजार, कोतवाली पल्टन बाजार, घंटाघर, डिस्पेंसारी रोड से धामावला, राजा रोड होते हुए वापस प्रिंस चौक स्थित जैन भवन पर संपन्न हुई। श्री जी के रथ में ख्वासी बनने का सौभाग्य लोकेश जैन, कुबेर बनने का सौभाग्य आशीष जैन, सारथी बनने का सौभाग्य संजीव जैन को प्राप्त हुआ। रथ यात्रा समापन के पश्चात भगवान् कि आरती करने का सौभाग्य बीना जैन, मनोज जैन को प्राप्त हुआ। श्री जी के रथ पर इंद्र बनने का सौभाग्य सिद्धार्थ जैन एवं अर्जुन जैन को प्राप्त हुआ। ऐरावत हाथी पर बैठने का सौभाग्य सुरेश जैन उमंग जैन को मिला। भगवान वासूपूज्य स्वामी के मोक्ष कल्याणक अवसर पर भगवान् को 12 किलो का मुख्य निर्वांण लाडू चढ़ाने का सौभाग्य आशीष जैन, सीमा जैन, सम्यक जैन, अलोकिता जैन राजेंद्रनगर को प्राप्त हुआ।

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